- विनोद मिश्रा
बांदा। “शहर का इतिहास, आस्था और सांस्कृतिक पहचान अब भू-माफियाओं के लालच की बलि” चढ़ चुका है। शहर के निम्नी पार मोहल्ले में स्थित “ऐतिहासिक प्रागी तालाब एवं रामलीला रावण वध मैदान को माफियाओं ने धीरे-धीरे हड़प” लिया। पिछले ढाई दशक में “अरबों रुपये मूल्य की नजूल और सरकारी ज़मीनें बेची” जा चुकी हैं। इन सबके पीछे एक ही कहानी राजस्व कर्मियों और भू-माफियाओं की मिलीभगत।
यह वही ज़मीन है जहाँ दशकों तक रामलीला के आयोजन, रावण वध, और धार्मिक मेले हुआ करते थे। जो सिकुड़ गये हैं। आज इस ऐतिहासिक स्थल पर बहुमंजिली इमारतें, कंक्रीट का जंगल, और रियल एस्टेट का खुला कारोबार चल रहा है। स्थानीय लोग आज भी याद करते हैं कि प्रागी तालाब की पवित्रता और रामलीला की परंपरा कितनी महान थी, लेकिन अब सबकुछ माफियाओं की लूट की भेंट चढ़ गया।
सूत्रों की मानें तो “भू-माफियाओं ने सिर्फ प्रागी तालाब ही नहीं, बल्कि आस-पास की पूरी नजूल और ग्राम सभा की ज़मीन भी कब्जाई” और बेची। संपत्ति का अनुमानित मूल्य अरबों रुपये में है, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से न तो जांच, न ही कोई एफआईआर,और न ही कोई सर्वे कराया गया। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि “लेखपालों, कानूनगों, तहसील कर्मियों ने मोटी रिश्वत लेकर जमीन के नक्शे बदल दिए। अवैध रजिस्ट्री कर दी गई और रामलीला स्थल को निजी भूमि में तब्दील कर बेच दिया गया।” यह एक सामान्य अतिक्रमण नहीं, पूरे “जिला प्रशासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह है?
आज प्रागी तालाब और रामलीला मैदान की जगह बिल्डिंगों की छाया, जमीन पर मिटे हुए स्मारक, और भविष्य में खोखली होती परंपरा की चीखें सुनाई देती हैं। “यह जमीन नहीं, एक पूरी सांस्कृतिक विरासत का दफनाया” जाना है। इतना बड़ा घोटाला होने के बाद भी रामलीला आयोजन से जुड़ी समितियाँ और “बांदा का प्रशासन, किसी ने भी अब तक इस विरासत को बचाने” की कोई कोशिश नहीं की।